प्रस्तुतकर्ता: चंद्रिका कुशवाहा
दीन..
********************************************
मै कैसे बताऊं
गरीबी की हाल।
तप्त है हृदय
जीना बेहाल।।
उदर पड़ा भारी है
सूरसा सा विशाल।
आघाते नहीं है
होते विकराल।।
भूख कैसे मिटे?
इसी में लाचार।
मजबूरी है गरीबी
गर्त में विचार।।
कनक को छुए
दूर से सलाम।
धूल बन जाते हैं
कहां है आराम?
कौन है शुभचिंतक?
राखे कौन दुलार?
नहीं कोई खेवईया
गरीबी की मार।।
स्तुति है देव से
निर्धन न दे।
पाषाण मंजूर है
उलाहना न दे।।
प्रो. डी पी कोरी
प्राचार्य
शासकीय महाविद्यालय बिश्रामपुर।।