लापरवाही और तानाशाही की भेंट चढ़ी जिंदगी: अडानी माइंस के कर्मचारी की मौत के बाद हाईवे पर आक्रोश, मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए: सड़क पर उतरे ग्रामीण, 10 किलोमीटर लगा लंबा जाम..


लापरवाही और तानाशाही की भेंट चढ़ी जिंदगी: अडानी माइंस के कर्मचारी की मौत के बाद हाईवे पर आक्रोश, मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए: सड़क पर उतरे ग्रामीण, 10 किलोमीटर लगा लंबा जाम..

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सी०पी० साहू
प्रेमनगर/सुरजपुर, आंचलिक न्यूज। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में एक बार फिर लापरवाही और तानाशाही की कहानी सामने आई है। अडानी माइंस के कर्मचारी सुदर्शन यादव की सड़क दुर्घटना में मौत ने न केवल उनके परिवार को गहरे शोक में डाला, बल्कि ग्रामीणों के आक्रोश को भी भड़का दिया। कंपनी और प्रशासन की असंवेदनशीलता और लापरवाही ने इस त्रासदी को और गहरा बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप नेशनल हाईवे 130 पर चार घंटे तक जाम लगा रहा।

दुर्घटना: कंपनी की लापरवाही उजागर

10 दिसंबर की रात को सुदर्शन यादव, जो पीईकेबी कोल माइंस (अडानी माइंस) में कार्यरत थे, अपनी बाइक से घर लौट रहे थे। ग्राम तारा के बाजारडांड चौक पर एक अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी, जिससे उनकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई।
इस दुर्घटना के बाद घटनास्थल पर पहुंचे परिजनों और ग्रामीणों ने देखा कि सुदर्शन का शव बुरी तरह क्षतिग्रस्त था। इस हादसे ने माइंस के प्रति लंबे समय से पनप रहे आक्रोश को हवा दे दी।

ग्रामीणों ने शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनकी मुख्य मांग थी कि माइंस तुरंत मुआवजा दे और मृतक के परिवार को सुरक्षा प्रदान करे। लेकिन माइंस के प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति और प्रशासन की उदासीनता ने स्थिति को और गंभीर बना दिया।

आंदोलन: 10 किलोमीटर लंबा जाम और प्रशासन की विफलता
ग्रामीणों का प्रदर्शन धीरे-धीरे व्यापक रूप लेने लगा। नेशनल हाईवे 130 पर चार घंटे तक जाम लगा रहा, जिससे वाहनों की लंबी कतारें लग गईं।
रात 12 बजे तक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। प्रेमनगर एसडीपीओ नरेंद्र पुजारी ने "फिल्मी अंदाज" में मौके पर पहुंचकर आंदोलन को खत्म करने का प्रयास किया। लेकिन आंदोलनकारियों के गुस्से के सामने पुलिस का दबाव बेअसर साबित हुआ।

अडानी माइंस पर सवाल: तानाशाही और असंवेदनशीलता का आरोप

हमर उत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश साहू और अन्य स्थानीय नेताओं ने आरोप लगाया कि अडानी माइंस और प्रशासन मिलकर काम कर रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि माइंस प्रतिदिन करोड़ों का राजस्व कमा रही है, लेकिन स्थानीय लोगों और कर्मचारियों की सुरक्षा और कल्याण पर ध्यान नहीं दिया जाता।

आंदोलनकारियों की मांगें:

 मृतक के परिवार को तुरंत उचित मुआवजा दिया जाए।
परिवार के एक सदस्य को स्थायी रोजगार दिया जाए।
 सड़क सुरक्षा और कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है। माइंस में कार्यरत कर्मचारियों के साथ इस तरह की लापरवाहियां आम हो गई हैं, लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं होती।

लापरवाही का अंत कब होगा?

यह घटना केवल एक सड़क दुर्घटना नहीं है, बल्कि एक सिस्टम की विफलता का प्रतीक है। अडानी माइंस जैसे बड़े संस्थानों को स्थानीय समुदायों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना चाहिए।
प्रशासन को भी अपने तटस्थ रवैये को छोड़कर जनहित में काम करना होगा। अगर अब भी इन लापरवाहियों और तानाशाही को रोका नहीं गया, तो ऐसी घटनाएं भविष्य में और बढ़ेंगी।
क्या सुदर्शन यादव की मौत प्रशासन और माइंस के लिए एक चेतावनी बन पाएगी, या यह केवल एक और आंकड़ा बनकर रह जाएगी? यह सवाल आज भी अधूरा है।

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