प्रस्तुतकर्ता: चंद्रिका कुशवाहा
मतदान
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मन से है मत
मन कहां संत है?
मन से भी खत है
खत भी अनंत है।।
इंद्रियों का है राजा
देह पर है शासन।
करता है टाल मटोल
लगाए रहते हैं आसन।।
करते हैं टटोल
जिधर मिले रस।
शक्ति है हजार गुना
टस से है न मस ।।
अनबूझे पहेली है
जैसा पिए पानी।
मत बन जाते हैं
कहलाते है दानी।।
लोकतंत्र में मत
मत का है दान।
अर्पण है मत का
हो गया मतदान।
मतदान निस्वार्थ है
तभी है फलीभूत।
दान अगर स्वार्थ है
तभी है वशीभूत।।
प्रो.डीपी कोरी
प्राचार्य
शासकीय महाविद्यालय बिश्रामपुर।।