रायपुर, आंचलिक न्यूज। गीता जयंती, जिसे मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है, प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह विशेष दिन केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर भी गीता के महत्व को दर्शाता है। गीता, अन्य ग्रंथों से अलग, भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से उत्पन्न हुई है, जो इसे अनूठा और दिव्य बनाती है।
गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन की समस्याओं के समाधान का अद्भुत मार्गदर्शक है। इसमें कर्म, ज्ञान, और भक्ति का त्रिवेणी संगम है। गीता मनुष्य को जीवन के गहन सत्य से अवगत कराती है और हर परिस्थिति में धैर्यपूर्वक समाधान खोजने की प्रेरणा देती है।
गीता का महत्व: जीवन जीने की कला सिखाने वाला ग्रंथ
गीता के 18 अध्याय और 700 श्लोक केवल उपदेश नहीं हैं, बल्कि जीवन की हर समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हैं। इसमें वर्णित चार प्रमुख विद्याएँ - अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या, और ब्रह्म विद्या - जीवन को भय, राग-द्वेष, अहंकार और अज्ञानता से मुक्त कर आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करती हैं।
गीता हमें सिखाती है कि फल की इच्छा किए बिना कर्म करना ही जीवन का सही मार्ग है। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दर्शनशास्त्र का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह हर धर्म, जाति और काल के लिए प्रासंगिक है और मनुष्य को निष्काम कर्म और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है।
गीता का संदेश: परिवर्तन संसार का नियम है
गीता के संदेश में बताया गया है कि जीवन में हर घटना पूर्व निर्धारित है। "जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, और जो होगा वह भी अच्छा होगा" - यह विचार जीवन को संतुलित और शांतिपूर्ण बनाने का संदेश देता है।
गीता यह भी सिखाती है कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। मृत्यु केवल एक परिवर्तन है, और आत्मा का लक्ष्य परमात्मा से मिलन है। यह हमें बताती है कि न तो शरीर हमारा है और न हम शरीर के। जीवन और मृत्यु के इस चक्र को समझकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
गीता: भक्तों का विश्वास और भगवान का गीत
गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि "भगवान द्वारा गाया गया गीत" है। यह कलियुग के पापों का नाश करने का अनुपम माध्यम है। गीता जीवन को धैर्य, सहनशीलता और समर्पण के साथ जीने की कला सिखाती है। इसका अध्ययन केवल धर्म का पालन करने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में स्थायित्व और आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाना चाहिए।
गीता जयंती पर अरविंद तिवारी ने कहा, "गीता भगवान की श्वांस और भक्तों का विश्वास है। यह मनुष्य को पलायन से पुरुषार्थ की ओर प्रेरित करती है और जीवन के हर कठिन मोड़ पर समाधान प्रस्तुत करती है। यह ग्रंथ केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि इसके उपदेशों को जीवन में आत्मसात करने के लिए है।"
गीता का सार: समर्पण और आत्मज्ञान
गीता का सार यही है कि हमें जीवन में हमेशा धैर्य रखना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि यह सृष्टि ईश्वर के द्वारा बनाई और संचालित होती है, और हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।
गीता का यह संदेश न केवल हिंदू धर्म, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए प्रेरणादायक है। इसका पाठ और चिंतन व्यक्ति को सही दिशा में प्रेरित करता है और जीवन को धन्य बनाता है। गीता जयंती हमें इस दिव्य ग्रंथ के महत्व को याद दिलाती है और इसे जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा देती है।