हिंदी है हम..
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बहती है कल कल नदियां
यह धरती और गगन है।
फूलों की गुलशन यहां
और सविता का तपन है।।
पक्षी करते हैं कलरव
बृंद बृंद गान है।
बहती है मंद हवा
हर झरोखे की शान है।।
वृक्ष लताएं डोले हैं
हिंदी की स्वर सुनकर।
उर में अति आनंद है
संकेत भाव बोलकर।।
काव्य धरा है ये धरती
भारत की पहचान है।
जननी सम संग संग
जीवन में एहसान है।।
गंग समान पावन है
बोली है मीठी मधुर।
मुख् की ऐसी शोभा है
कोयल की है जैसी सुर।।
हिंदी है हम सब
भाव ये जगाना है।
सद्भाव जगाती है हिंदी
विश्व को ये बताना है।।
प्रो. डीपी कोरी
प्राचार्य
शासकीय महाविद्यालय बिश्रामपुर।।