फर्जी यात्रा भत्ते से सरकारी खजाने को चूना! ट्रेजरी से मिलीभगत कर व्याख्याता ने उठाया मोटा फायदा
ब्यूरो रिपोर्ट
सूरजपुर, आंचलिक न्यूज। छत्तीसगढ़ में सरकारी खजाने को चूना लगाने का एक बड़ा मामला सामने आया है, जहां शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज, सूरजपुर के एक व्याख्याता ने फर्जी यात्रा भत्ते (टीए) के नाम पर लाखों रुपये डकार लिए। ये गड़बड़ी कोई एक या दो साल की नहीं, बल्कि पूरे नौ साल से चल रही है। हैरानी की बात यह है कि यह सबकुछ जिम्मेदार अधिकारियों की नाक के नीचे होता रहा, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
फर्जी बिल बनाकर लाखों का भुगतान
सूत्रों के मुताबिक, व्याख्याता एन. योगेश शासकीय कार्यों के नाम पर अक्सर रायपुर और भिलाई का सफर दिखाकर मोटी रकम निकालते रहे। अंबिकापुर से रायपुर तक की दूरी करीब 350 किमी और भिलाई की 400 किमी है, जहां बस या ट्रेन से सफर करने पर किराया लगभग 1000 रुपये आता है, जबकि कार या टैक्सी से यही सफर 8,000 से 10,000 रुपये का हो जाता है। इसी का फायदा उठाकर व्याख्याता ने बार-बार अपनी कार से सफर करने का फर्जी बिल पेश किया और कॉलेज से मोटी रकम वसूल ली।
कार खड़ी रहती थी, सफर दूसरों के साथ!
चौंकाने वाली बात यह है कि जिन गाड़ियों के बिल व्याख्याता ने पेश किए, वे कारें अक्सर उनके सरकारी निवास, छात्रावास या किसी जान-पहचान वाले के यहां खड़ी देखी गईं। मतलब, वे खुद बस या ट्रेन से यात्रा करते या किसी और के वाहन में सफर करते, लेकिन बिल हर बार अपनी कार का लगाते रहे।
ट्रेजरी विभाग से सांठगांठ का खुलासा
व्याख्याता ने इस गड़बड़झाले को लंबे समय तक छिपाने के लिए ट्रेजरी कार्यालय से भी मिलीभगत कर रखी थी। सभी फर्जी यात्रा भत्ते का भुगतान आसानी से पास हो जाता, क्योंकि उनके द्वारा पेश किए गए झूठे प्रमाण पत्रों को आंख मूंदकर मान लिया जाता। सूत्रों के मुताबिक, वे अतिरिक्त राशि आवंटन कराने के लिए संचालनालय में भी अपनी पकड़ बनाए हुए हैं।
सिर्फ यात्रा भत्ता ही नहीं, पद पाने के लिए भी खेल!
एन. योगेश ने कथित तौर पर अपने से वरिष्ठ अधिकारी की फाइल रुकवाकर आहरण संवितरण अधिकारी (डीडीओ) का पद हथिया लिया। इसके अलावा, संस्थान के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को परेशान कर अपनी दबंग छवि बनाने का प्रयास भी किया।
आवेदन देकर की गई उच्चस्तरीय जांच की मांग
इस पूरे फर्जीवाड़े की उच्च स्तरीय जांच की मांग की जा रही है। अगर इस मामले की सही तरीके से जांच नहीं हुई तो भविष्य में इससे भी बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है। अब देखना यह है कि शासन-प्रशासन इस घोटाले पर कब तक कार्रवाई करता है, या फिर यह मामला भी फाइलों में ही दफन हो जाएगा?