सरगुजा का शक्कर कारखाना पर संकट! किसानों और कर्मचारियों की आजीविका पर खतरा, सरकार की नीतियों पर सवाल, निजीकरण की साजिश? 56 करोड़ के नुकसान के बाद अब किसानों और श्रमिकों का भविष्य संकट में, बगैर शिकायत और विरोध के लिया गया फैसला..


सरगुजा का शक्कर कारखाना पर संकट! किसानों और कर्मचारियों की आजीविका पर खतरा, सरकार की नीतियों पर सवाल, निजीकरण की साजिश? 56 करोड़ के नुकसान के बाद अब किसानों और श्रमिकों का भविष्य संकट में, बगैर शिकायत और विरोध के लिया गया फैसला..

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ब्यूरो रिपोर्ट 

सरगुजा संभाग का एकमात्र शक्कर कारखाना अब बंद होने की कगार पर है। इसे निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है, जिससे हजारों किसानों और कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। 2013 से 2025 तक सरकार द्वारा कम दरों पर शक्कर खरीदने के कारण इस कारखाने को 56 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। अब सवाल उठ रहे हैं कि यह जानबूझकर किया गया ताकि निजीकरण की राह आसान हो जाए।

शक्कर स्टॉक होने के बावजूद बिक्री पर रोक, प्रबंधन पर उठे सवाल 

कारखाने में बड़ी मात्रा में शक्कर स्टॉक में होने के बावजूद इसकी बिक्री की अनुमति नहीं दी जा रही। राज्य सरकार की धीमी प्रक्रियाओं और अनियमित नीतियों के चलते शक्कर कारखाने की वित्तीय स्थिति चरमराने लगी है। 55 करोड़ रुपये की प्रतिपूर्ति राशि लंबित होने से कर्मचारियों के वेतन और किसानों के भुगतान में देरी हो रही है।

हजारों गन्ना किसानों के लिए आजीविका संकट

गन्ना किसानों के लिए यह कारखाना आजीविका का मुख्य स्रोत है। लेकिन निजीकरण की खबरों से वे गहरे संकट में हैं। कई किसानों ने ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरण लोन पर खरीदे हैं, अब उन्हें डर है कि निजी कंपनियां उनकी फसल की उचित कीमत नहीं देंगी।

2018-19 में गन्ने की कीमत 261 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो 2023-24 तक लगभग स्थिर रही। महंगाई और लागत बढ़ने के बावजूद किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा।

कर्मचारियों और किसानों में आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी 

शक्कर कारखाने के निजीकरण की आशंका के चलते किसान संगठनों और कर्मचारी यूनियनों में नाराजगी बढ़ रही है। उन्होंने सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि इसे निजी हाथों में सौंपा गया, तो उग्र आंदोलन होगा।

कर्मचारियों को डर है कि निजीकरण के बाद उनकी नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी, जबकि किसानों को आशंका है कि वे शोषण का शिकार होंगे और उनकी फसल की उचित कीमत नहीं मिलेगी।

सरकार के पास क्या विकल्प? 

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार शक्कर बिक्री नीति को सरल बनाए और भुगतान प्रक्रिया में तेजी लाए, तो कारखानों को निजी हाथों में सौंपने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

किसानों और श्रमिकों की मांगें:

बकाया 55 करोड़ रुपये की प्रतिपूर्ति राशि का शीघ्र भुगतान हो।

शक्कर बिक्री की अनुमति देकर कारखाने को आर्थिक मजबूती दी जाए।

किसानों और श्रमिकों को समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जाए।

निजीकरण के बजाय कारखानों को सरकार के अधीन रखते हुए आधुनिकीकरण किया जाए।

क्या सरकार अपना फैसला बदलेगी?

सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है, लेकिन अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो किसानों और श्रमिक संगठनों का आक्रोश और बढ़ सकता है। इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस तेज हो गई है, और आने वाले दिनों में बड़े जनांदोलन की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

अब देखना होगा कि सरकार किसानों और कर्मचारियों के हित में काम करती है या निजी कंपनियों के पक्ष में झुकती है।

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