मुख्यमंत्री के गृह जिले में ही शिक्षा व्यवस्था बदहाल, जर्जर आंगनबाड़ियों में खुले आसमान तले पढ़ने को मजबूर बच्चे! विकास के दावों की खुली पोल! आंगनबाड़ी केंद्र खंडहर में तब्दील! मासूमों का भविष्य दांव पर, प्रशासन मौन.. देखें वीडियो


मुख्यमंत्री के गृह जिले में ही शिक्षा व्यवस्था बदहाल, जर्जर आंगनबाड़ियों में खुले आसमान तले पढ़ने को मजबूर बच्चे! विकास के दावों की खुली पोल! आंगनबाड़ी केंद्र खंडहर में तब्दील! मासूमों का भविष्य दांव पर, प्रशासन मौन.. देखें वीडियो

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ब्यूरो कार्यालय 

सरगुजा/जशपुर, आंचलिक न्यूज। मुख्यमंत्री के गृह जिले में आंगनबाड़ी केंद्रों की दयनीय स्थिति ने सरकारी दावों की पोल खोल दी है। बगीचा जनपद के रंगपुर आंगनबाड़ी केंद्र की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि वहां मासूम बच्चे भवन के अंदर बैठने से डरते हैं। मजबूरन उन्हें बाहर खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। यह अकेला केंद्र नहीं है, बल्कि पूरे ब्लॉक में कई ऐसे आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनकी हालत बदतर हो चुकी है।

छत गिरने का डर, सीमेंट उखड़ चुका, सुविधाएं नदारद 

रंगपुर आंगनबाड़ी केंद्र की इमारत इतनी जर्जर हो चुकी है कि कभी भी छत का प्लास्टर गिर सकता है। अंदर बैठना खतरे से खाली नहीं है, इसलिए बच्चे हर मौसम में बाहर बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। बरसात में गीली जमीन पर, गर्मी में धूप में और ठंड में कंपकंपाते हुए ये नौनिहाल शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

यह हाल तब है जब महिला एवं बाल विकास विभाग के पास हर साल बजट का प्रावधान होता है। सवाल यह उठता है कि आखिर यह फंड जाता कहां है? क्यों इन केंद्रों की मरम्मत और सुधार कार्य वर्षों तक लंबित रहता है?

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की दुर्दशा: कहीं अकेले काम, तो कहीं सहायिका के भरोसे केंद्र 


सरकार बच्चों के पोषण और शिक्षा के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। कई जगहों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अकेले ही पूरे केंद्र को संभालने के लिए मजबूर हैं। कुछ जगह तो ऐसी हैं, जहां सिर्फ सहायिका के भरोसे ही केंद्र चल रहा है। न पर्याप्त शिक्षक हैं, न ही संसाधन, लेकिन फिर भी कार्यकर्ता अपने स्तर पर बच्चों को शिक्षित करने का हरसंभव प्रयास कर रही हैं।

मुख्यमंत्री के गृह जिले में मूलभूत सुविधाओं का अभाव! 

यह विडंबना ही है कि मुख्यमंत्री के गृह जिले में भी शिक्षा और पोषण के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। अगर यहां स्थिति इतनी खराब है, तो बाकी जिलों की हालत क्या होगी? सवाल यह भी उठता है कि जब सरकार की नाक के नीचे यह दुर्दशा हो रही है, तब दूर-दराज के इलाकों की स्थिति कितनी भयावह होगी!

ज़िला पंचायत सदस्य आशिका कुजूर ने जताई चिंता, मुख्यमंत्री से की अपील 

इस गंभीर विषय पर ज़िला पंचायत सदस्य आशिका कुजूर ने चिंता जताते हुए कहा कि,
"थोड़ी उम्मीद है कि हमारे जिले में माननीय मुख्यमंत्री जी हैं, तो वे इस विषय पर संज्ञान जरूर लेंगे। बीडीसी और डीडीसी का इतना बजट नहीं होता कि हम अपने स्तर पर सभी केंद्रों की मरम्मत करा सकें। प्रशासन को चाहिए कि जल्द से जल्द इन जर्जर आंगनबाड़ियों का जीर्णोद्धार कराए ताकि बच्चों को सुरक्षित और सुविधाजनक वातावरण मिल सके।"

प्रशासन की चुप्पी – कब तक सहेंगे बच्चे?

हर साल बजट आने के बावजूद इन केंद्रों का जीर्णोद्धार क्यों नहीं हो रहा? कौन इसका जिम्मेदार है? प्रशासन की चुप्पी ने इस पूरे मामले को संदेह के घेरे में ला दिया है।

अब सवाल यह है कि – क्या यह मामला भी फाइलों में दबा रहेगा या फिर सरकार और प्रशासन इस पर ठोस कार्रवाई करेगा? बच्चों का भविष्य दांव पर है, और अब इस मुद्दे को नजरअंदाज करना अपराध से कम नहीं होगा।

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