युक्तियुक्तकरण या शिक्षा का संकुचन? पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह का आरोप—बच्चों के अधिकारों का हनन कर रही है भाजपा सरकार..


युक्तियुक्तकरण या शिक्षा का संकुचन? पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह का आरोप—बच्चों के अधिकारों का हनन कर रही है भाजपा सरकार..

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चंद्रिका कुशवाहा 

रायपुर, आंचलिक न्यूज। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी युक्तियुक्तकरण आदेश ने शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। सरकार का दावा है कि इससे शिक्षक व्यवस्था में संतुलन आएगा और संसाधनों का समुचित वितरण संभव होगा, लेकिन विपक्ष और शिक्षक संगठनों का कहना है कि यह कदम ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों के बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकार पर सीधा हमला है।

पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने इस नीति को "अन्यायपूर्ण और अमानवीय" करार देते हुए कहा कि

"सरकार शिक्षा के क्षेत्र में संतुलन लाने की आड़ में बच्चों से उनका भविष्य छीन रही है। दो शिक्षक 18 कक्षाएं कैसे पढ़ा सकते हैं? यह एक असंवेदनशील सोच है जो केवल आंकड़ों में सुधार दिखाने की कोशिश है, हकीकत में नहीं।”

क्या है युक्तियुक्तकरण योजना?

छत्तीसगढ़ शासन ने राज्य के 10,463 स्कूलों को युक्तियुक्तकरण की सूची में शामिल किया है। योजना के तहत:

  • छात्र संख्या कम होने पर स्कूलों को आसपास के स्कूलों में मर्ज किया जाएगा।
  • जहां शिक्षक अधिक हैं, वहां से उन्हें उन स्कूलों में भेजा जाएगा जहाँ शिक्षक अनुपलब्ध हैं।
  • 1+1 सेटअप: प्राथमिक विद्यालयों में एक शिक्षक पढ़ाने के लिए, एक प्रशासनिक कार्यों के लिए।
  • 1+3 सेटअप: मिडिल स्कूलों में चार शिक्षक, जिनमें एक प्रशासनिक और तीन शिक्षण कार्यों के लिए।

आंकड़े जो सोचने पर मजबूर करते हैं

  • राज्य के 54,185 स्कूलों में से 297 स्कूल पूरी तरह शिक्षकविहीन हैं।
  • 7,127 स्कूलों में केवल एक शिक्षक कार्यरत है।
  • सरगुजा संभाग के 919 स्कूल युक्तियुक्तकरण की चपेट में हैं:
    • बलरामपुर: 414 स्कूल
    • सूरजपुर: 278 स्कूल
    • सरगुजा: 227 स्कूल

शिक्षकों और अभिभावकों की चिंता

शिक्षक संगठनों का कहना है कि नई व्यवस्था से शिक्षकों पर असंभव जिम्मेदारी आ जाएगी। एक शिक्षक को प्रशासनिक काम के साथ-साथ कई कक्षाओं को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जा रही है। इससे बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ेगा।

अभिभावकों में भी नाराजगी है।
बघिमा गांव के एक ग्रामीण ने कहा,

“हमारे गाँव का स्कूल पहले से ही सीमित संसाधनों के साथ चल रहा था। अब दो शिक्षक भी हटा दिए जाएंगे, तो हम बच्चों को कहाँ भेजें? मजबूरी में निजी स्कूलों की फीस चुकानी पड़ेगी।”

सरकार की मंशा या मजबूरी?

शासन का पक्ष है कि यह कदम संसाधनों के न्यायसंगत वितरण और शिक्षक उपलब्धता में असंतुलन को दूर करने के लिए उठाया गया है। लेकिन ज़मीनी हकीकत बताती है कि यह व्यवस्था लागू करने से पहले स्थानीय परिस्थितियों और जनसंख्या घनत्व का अध्ययन नहीं किया गया।

"अगर सरकार नहीं कर सकती, तो इस्तीफा दे" – डॉ. टेकाम

डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा,

“बच्चों को शिक्षा देना सरकार की संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी है। अगर सरकार इस जिम्मेदारी को नहीं निभा सकती, तो उसे या तो इस्तीफा देना चाहिए या फिर शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह निजी हाथों में सौंप देना चाहिए।”


आंकड़ों की बाजीगरी या शिक्षा का भविष्य?

युक्तियुक्तकरण की नीति फिलहाल शिक्षा की समानता के उद्देश्य से लागू की गई एक रणनीति है, लेकिन ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में इसका असर बच्चों के अधिकारों और भविष्य पर पड़ता नजर आ रहा है। जब एक शिक्षक को एक साथ 5 कक्षाओं का बोझ सौंपा जाएगा, तो 'सर्व शिक्षा अभियान' सिर्फ एक नारा बनकर रह जाएगा।

सरकार को चाहिए कि वह ज़मीनी हकीकत के आधार पर नीतियों में संशोधन करे, अन्यथा शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों पर रह जाएगा और बच्चे फिर से दो वर्गों में बंट जाएंगे—एक जो निजी स्कूलों में पढ़ेंगे और दूसरा जो व्यवस्था की उपेक्षा का शिकार होंगे।

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